(अवैस उस्मानी ): दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल विवाद मामले में अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की संविधानिक पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधानिक पीठ ने पांच दिन की सुनवाई के बाद मामले में फैसला सुरक्षित रखा। संविधानिक पीठ तय करेगी कि दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा या उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार के पास रहेगा ?
केंद्र सरकार मामले की सुनवाई पूरी होने से पहले मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने की मांग किया। दिल्ली सरकार ने कहा कि यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। समस्या यह है कि दूसरा पक्ष संसद की तुलना केंद्र सरकार से कर रहा है। संसद कोई भी कानून बना सकती है, लेकिन यहां अधिकारियों को लेकर एक नोटिफिकेशन का मामला है। दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट में आज संविधानिक पीठ के सामने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले को बड़ी पीठ के सामने भेजने की मांग किया। केंद्र सरकार ने यह कहा कि यह मामला देश की राजधानी का है, ऐसे में इसके महत्व को देखते हुए मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाए।
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा इतिहास शायद हमें याद न रखे कि हमने अपने देश की राजधानी को पूर्ण अराजकता के हवाले कर दिया था इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला में देरी को मानदंड नहीं बनाना चाहिए। मुख्य न्यायधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब सुनवाई पूरी होने वाली है, ऐसी माँग कैसे की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले में पहले बहस क्यों नहीं किया। दिल्ली सरकार ने भी इसका विरोध किया कि बार-बार राजधानी का नाम लेकर यह नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इस संबंध में लिखित दलीलें देने की इजाजत दे दी।
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दिल्ली सरकार की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आजादी से पहले के समय में अंग्रेज इसे इंडियन सिविल सर्विसेज कहते थे। पंडित नेहरू ने टिप्पणी की थी कि यह न तो इंडियन है और न ही सिविल, मुझे उम्मीद है कि इस बार काले और सफेद रंग में सीमाओं को स्पष्ट कर दिया जाएगा। दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यहां ऐसी तस्वीर पेश की जा रही है कि राष्ट्रीय राजधानी को हाईजैक किया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने कहा कि समस्या यह है कि दूसरा पक्ष संसद की तुलना केंद्र सरकार से कर रहा है, संसद कोई भी कानून बना सकती है लेकिन यहां अधिकारियों को लेकर एक नोटिफिकेशन का मामला है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जब सब केंद्र के कंट्रोल में रहेगा तो दिल्ली में निर्वाचित सरकार क्या करेगी?