Uttar Pradesh: वृंदावन में गुमनामी में जी रही विधवाएं, किसी सियासी दल ने नहीं ली कभी कोई सुध

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Uttar Pradesh: चुनावी मौसम में नेता हर किसी को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के वृंदावन में एक तबका अब भी गुमनामी में जी रहा है। ये हैं वृंदावन की विधवाएं। पहले इन्हें परिवार ने छोड़ दिया। और अब नेता भी सुध नहीं ले रहे। क्योंकि इनमें से ज्यादातर रजिस्टर्ड वोटर नहीं हैं। घर-बार छोड़ने के साथ उन्होंने अपनी पहचान भी छोड़ दी है।

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एक अनुमान के मुताबिक मथुरा लोकसभा सीट के वृंदावन, गोवर्धन और राधा कुंड में 10 से 12 हजार विधवाएं रहती हैं। इनमें 10 फीसदी से भी कम के पास वोटर आईडी कार्ड हैं। मथुरा में 26 अप्रैल को वोटिंग होगी। राजनैतिक रूप से नजरंदाज किए जाने से ज्यादातर विधवाएं बेपरवाह हैं। उनका मानना ​​है कि सत्ता में कोई भी आए, उनकी हालत में सुधार नहीं होगा। लेकिन कुछ महिलाओं को लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार का हिस्सा न होने का मलाल है।

वृंदावन में कर रही हैं विधवा महिलाएं अपना गुजारा

ज्यादातर महिलाएं या तो भीख मांगती हैं, या मंदिर के बाहर ‘भंडारे’ का इंतजार करती हैं या फिर महज 20 रुपये के लिए घंटों भजन गाती हैं। वे मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड से आई हैं। उन्हें घर वालों ने छोड़ दिया। वृंदावन में उन्हें जिंदा रहने के लिए भारी संघर्ष करना पड़ता है। विधवाएं संगठन के रूप में लामबंद नहीं हैं। लिहाजा ये राजनैतिक दलों का वोट बैंक भी नहीं हैं। उम्र के आखिरी पड़ाव पर उनमें वोटर आईडी कार्ड बनवाने की भी ताकत नहीं बची है। कह सकते हैं कि उन्हें बची हुई जिंदगी बिना किसी पहचान के बितानी पड़ रही है।


विधवाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ का कहना है कि उनके पास संसाधन सीमित होते हैं और काम ज्यादा। मैत्री एनजीओ ने मशहूर टीवी शो सत्यमेव जयते में विधवाओं की दुर्दशा का जिक्र किया था। ये संस्था करीब 400 विधवाओं के लिए काम करती है, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उनके वोटर आईडी कार्ड बनवाने में नाकाम रही है। निजी और सरकारी आश्रमों से बाहर कई विधवाएं तंग घरों में रहती हैं। वहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं होतीं।

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फिर एक दिन वहीं उनकी सांसें बंद हो जाती हैं। कईयों के सिर पर तो छत भी नहीं होती। हालात से समझौता करना उनकी मजबूरी है, जिससे बाहर निकलना आसान भी नहीं। वजह जो भी हो, हकीकत ये है कि 140 करोड़ आबादी वाले देश में करीब 97 करोड़ वोटर हैं। लेकिन इन  हजार महिलाओं की किस्मत शायद कभी नहीं बदलेगी। लिहाजा चार जून को केंद्र में सरकार चाहे जिसकी भी बने, इन महिलाओं की जिंदगी में शायद ही कोई बदलाव आए।

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