उपराष्ट्रपति धनकड़ ने पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन-2025 के समापन सत्र को संबोधित किया

Vice President News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि, स्‍थायि‍त्‍व के विचार का वैश्विक चर्चा का विषय बनने से बहुत पहले, बहुत पहले…भारत सदियों से इसे जी रहा था, जहां प्रत्‍येक बरगद का पेड़ एक मंदिर था, हर नदी एक देवी थी और सबसे अच्छी बात यह थी कि यह एक ऐसी सभ्यता की एक अज्ञात अवधारणा थी जो धर्मनिरपेक्षता की पूजा करती थी। हमारा वैदिक साहित्य धरती माता के पोषण, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को बढ़ावा देने के लिए सोने की खान है।’’
उपराष्ट्रपति धनकड़ ने आगे कहा, ‘‘भारत के डीएनए में पारिस्थितिकी तंत्र के पतन के खिलाफ एकमात्र उपचार है और वह प्रत्यक्ष उपभोग है। हमें बस यह पढ़ना है कि हमारे सोने की खान में क्या समाहित है।’’उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन- 2025 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए अपने विचार रखे है।उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि, ‘‘विकसित देशों को पर्यावरण संबंधी सोच में राजनीतिक सीमाओं से आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे मॉडल अपनाना चाहिए जहां पृथ्‍वी का प्रदूषण मुक्‍त रहना मानव समृद्धि और कल्याण का आधार बन जाए।’’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी को याद करते हुए कहा, ‘‘भोपाल गैस त्रासदी का सबक अभी भी नहीं सीखा गया है। 1984 का यूनियन कार्बाइड रिसाव बहुत बड़ी पर्यावरणीय लापरवाही थी। चार दशक बाद भी, परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी, आनुवंशिक विकारों और भूजल प्रदूषण से पीड़ित हैं… जरा सोचिए जागरूकता की कितनी कमी थी। उस समय हमारे पास राष्‍ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) जैसी कोई संस्था नहीं थी। हमारे पास कोई नियामक व्यवस्था नहीं थी जो इस मुद्दे को हल कर सके। अगर उस समय मौजूदा स्तर की नियामक व्यवस्था होती तो चीजें बहुत अलग होतीं।’’
उपराष्ट्रपति ने पर्यावरणीय नैतिकता विकसित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, ‘‘पर्यावरण नैतिकता को विकसित करने और उस पर विश्वास करने की वैश्विक आवश्यकता है, यह पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिए मानव के नैतिक दायित्वों को रेखांकित करता है… हमें यह समझना होगा कि पृथ्‍वी केवल हमारे लिए नहीं है। हम इसके मालिक नहीं हैं। वनस्पतियों, जीवों और अन्‍य प्राणियों को साथ-साथ पनपना और फलना-फूलना चाहिए। ऐसी स्थिति में, मनुष्य को प्रकृति और अन्य जीवित प्राणियों के साथ सामंजस्‍य बनाकर रहना सीखना होगा। क्या हम ऐसा कर रहे हैं? नहीं… प्रकृति के संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग पर व्यक्तिगत ध्यान देना होगा। यह हमारी आदत होनी चाहिए। हमारी राजकोषीय शक्ति, हमारी राजकोषीय क्षमता प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को निर्धारित नहीं कर सकती और इनका उपभोग इष्टतम होना चाहिए।’उपराष्‍ट्रपति ने आगे कहा, ‘‘पारिस्थितिकी विस्तार और संरक्षण नैतिकता दोनों ही सामंजस्यपूर्ण मानव-प्रकृति संबंधों का समर्थन करते हैं, और अपनाना बहुत आसान है। इसके लिए जीवन के प्रति सकारात्मक सोच के अलावा किसी और वस्‍तु की जरूरत नहीं है। हमें पीढ़ी दर पीढ़ी स्थिरता के लिए पर्यावरण संरक्षण और विवेकपूर्ण संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना होगा।’’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने विधि, विज्ञान और नैतिकता के साथ एनजीटी के परस्पर संबंधों पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘मैं एनजीटी को जिस तरह से देखता हूं, उसमें एन का मतलब पोषण, जी का मतलब हरियाली और टी का मतलब कल है। मेरे लिए एनजीटी का मतलब है कल के लिए हरियाली का पोषण। यह सिर्फ शब्दों का खेल नहीं है। यह एक ऐसी संस्था का दृष्टिकोण है जो विधि, विज्ञान और नैतिकता को जोड़कर प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को बदल देती है। आइए हम अपनी जड़ों से आगे बढ़ें, अत्याधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करें और अटूट संकल्प के साथ जलवायु के प्रति न्याय को बनाए रखें।’उपराष्ट्रपति ने कामना करते हुए कहा, ‘‘आकाश और अंतरिक्ष में शांति स्‍थापित हो। धरती, जल और सभी वनस्‍पतियों में शांति हो और वह फैलती रहे। हर जगह शांति रहे।’’इस अवसर पर उपराष्ट्रपति की पत्नी डॉ. (श्रीमती) सुदेश धनखड़, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा, राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव तन्मय कुमार और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

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