अमन पांडेय: देश में हर जगह मनाया जाने वाला रंगो का त्योहार होली करीब आ रहा सभी को इस रंगो से भरे त्योहार का बेसब्री से इंतजार है, होली को सभी अपने अपने अंदाज में उत्सव की तरह मनाते है। लेकिन कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा और उसके आस-पास के क्षेत्रों में होली का उत्सव बहुत दिन पहले ही शुरू हो जाता है।मथुरा, वृंदावन और बरसाना की होली के त्सव को देखने के लिए देश-विदेश से लोग मथुरा, बरसाना पहुंचते हैं।
मथुरा, वृंदावन और बरसाना के लोगों का होली खेलने का अंदाज ही अलग होता है. यहां पर कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल की, कहीं लड्डू तो कहीं लट्ठमार होली मनाने की परंपरा है. 27 फरवरी यानी कल बरसाने में लड्डू की होली खेली जाएगी. जबकि 28 फरवरी को बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाएगी।
क्या होती है लट्ठमार होली ?
बरसाना में विश्व-प्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है. लट्ठमार होली में महिलाएं, जिन्हें हुरियारिन कहते हैं, लट्ठ लेकर हुरियारों को यानी पुरुषों को मजाकिया अंदाज में पीटती हैं। इस लट्ठमार होली में लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पुरुष इस लट्ठमार होली में पुरुष सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के लट्ठमार होली में पुरुष सिर पर ढाल रखकर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं। इस दिन महिलाओं और पुरुषों के बीच गीत और संगीत की प्रतियोगिताएं भी होती हैं।
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क्या है लट्ठमार होली की परंपरा ?
कहते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत लगभग 5000 साल पहले हुई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार नंद गांव में जब कृष्ण राधा से मिलने बरसाना गांव पहुंचे तो वे राधा और उनकी सहेलियों को चिढ़ाने लगे, जिसके चलते राधा और उनकी सहेलियां कृष्ण और उनके ग्वालों को लाठी से पीटकर अपने आप से दूर करने लगीं। तब से ही इन दोनों गांव में लट्ठमार होली का चलन शुरू हो गया। यह परंपरा आज भी मनाई जाती है। नंद गांव के युवक बरसाना जाते हैं तो खेल के विरुद्ध वहां की महिला लाठियों से उन्हें भगाती हैं और युवक इस लाठी से बचने का प्रयास करते हैं। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उन्हें महिलाओं की वेशभूषा में नृत्य कराया जाता है। इस तरह से लट्ठमार होली मनाई जाते हैं।