9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पर सितंबर में सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

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दिल्ली (अवैस उस्मानी)। वृंदावन के कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर देश के 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक को दर्जा दिए जाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कहा कि वह कोई ठोस उदाहरण कोर्ट के सामने रखे, जिसमे किसी राज्य विशेष में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का वाजिब दर्जा मांगने पर न मिला हो। सुप्रीम कोर्ट मामले में पहले से ही दायर अश्वनी कुमार उपाध्याय की अर्जी के साथ सितम्बर के पहले हफ्ते में सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में वृंदावन के कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 की धारा 2 सी की वैधता को चुनौती दी है। याचिका में राज्यों के साथ जिलेवार अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग की है। याचिका में जनसंख्या, धार्मिक एवं भाषाई आधार पर अल्पसंख्यक माने गए समुदाय को विशेष अधिकार देने और देश के विभिन्न राज्यों एवं जिलों में हिंदुओं की कम आबादी के बावजूद ऐसे अधिकारों से वंचित रखने को संविधान की मूल भावना के विपरीत बताया गया।

आज मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से ठोस उदाहरण रखने की सूरत में हम उस पर विचार कर सकते है पर हम हिंदुओं को उनकी कम आबादी वाले राज्यों में अल्पसंख्यक नहीं करार दे सकते। बता दें सुप्रीम कोर्ट में पहले एक याचिका भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाधयाय ने याचिका दाखिल करके केंद्र ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के गठन को चुनौती दी है, साथ ही याचिका में हर राज्य में आबादी के हिसाब से अल्पसंख्यकों के निर्धारण की मांग की गई है। साथ ही याचिका में जम्मू कश्मीर, मिज़ोरम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, अरुणांचल प्रदेश, पंजाब, लक्ष्यद्वीप, लद्दाख में हिन्दू को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग किया है।

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अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका में कहा गया है की पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि राज्य अपने यहां किसी समुदाय या भाषा को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जहां हिन्दू या अन्य समुदाय जो अल्पसंख्यक है वह राज्य उस समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित कर सकते हैं। इसके जरिए वह अपने शिक्षा संस्थान संचालित कर सकते हैं। केंद्र सरकार ने हलफनामे में महाराष्ट्र और कर्नाटक का उदाहरण देते हुए कहा कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के लिए धार्मिक और कर्नाटक ने उर्दू, टेलडु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी कोंकणी और गुजराती को भाषाई के आधार पर अल्पसंख्यक घोषित किया है, अन्य राज्य भी ऐसा कर सकते हैं।

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