Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार 19 अप्रैल को कहा कि हो सकता है कि किसी बच्चे का अश्लील सामग्री देखना अपराध न हो, लेकिन अश्लील सामग्रियों में बच्चों का इस्तेमाल किया जाना “गंभीर” चिंता का विषय है और ये अपराध हो सकता है।
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चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठनों- ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन अलायंस ऑफ फरीदाबाद और नई दिल्ली के बचपन बचाओ आंदोलन- की अपील पर फैसला सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं। ये संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं।
बेंच ने कहा, हो सकता है कि एक बच्चे का अश्लील सामग्री देखना अपराध नहीं हो, लेकिन अश्लील सामग्रियों को बनाने में बच्चों का इस्तेमाल किया जाना अपराध हो सकता है और ये गंभीर चिंता का विषय है।’ मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि केवल बाल अश्लील सामग्री डाउनलोड करना और देखना बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून के तहत अपराध नहीं है।
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हाई कोर्ट ने 11 जनवरी को 28-साल के एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द भी कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप लगाया गया था। दो संगठनों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एच. एस. फुल्का ने हाई कोर्ट के फैसले से असहमति जताई और पॉक्सो अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया।
बेंच ने कहा कि अगर किसी को इनबॉक्स में ऐसी सामग्री मिलती है तो संबंधित कानून के तहत जांच से बचने के लिए उसे हटा देना होगा या नष्ट कर देना होगा। उसने कहा कि अगर कोई बाल अश्लील सामग्री को नष्ट न करके सूचना प्रौद्योगिकी प्रावधानों का उल्लंघन करना जारी रखता है तो यह एक अपराध है। बेंच अश्लील सामग्री डाउनलोड करने के आरोपी की ओर से पेश वकील की दलीलों का जवाब दे रही थी।