राष्ट्रपति की शाही बग्घी की कहानी है बेहद दिलचस्प, भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था टॉस

Royal Carriage

Royal Carriage: कभी ना कभी आपने राष्ट्रपति की शाही बग्घी को देखा होगा। यह बग्घी देखने में जितनी आकर्षक लगती है उतनी ही आकर्षक भारत के हिस्से में आने की इसकी कहानी है। यह सोने की रॉयल बग्घी है, जिसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। 1950 में हुए पहले गणतंत्र दिवस समारोह में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बग्घी पर सवार होकर गणतंत्र दिवस समारोह में पहुंचे थे। आजादी से पहले इसमें वायसराय और बाद में देश के राष्ट्रपति इस शाही बग्घी की सवारी करते हैं। यह बग्घी (Carriage) देखने में जितनी आकर्षक और शाही नजर आती है, इसकी कहानी  भी उतनी ही दिलचस्प है।

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राष्ट्रपति की बग्घी को क्यों कहा जाता है शाही ?

यह बग्घी अपने-आप में बेहद खास है, जो अपने अंदर कई सारी खासियत को समेटे हुए हैं। इस खास बग्घी में सोने की परत चढ़ी हुई है। अंग्रेजों के वायसराय पहले इसका इस्तेमाल करते थे, आजादी के बाद खास मौके पर इस बग्घी का प्रयोग देश के राष्ट्रपति भी करने लगे। सोने से सजी-धजी इस बग्घी के दोनों ओर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह सोने से अंकित है और इसे खींचने के लिए खास घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

उस समय में 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े इसे खींचा करते थे लेकिन बाद में इसमें 4 घोड़ों का ही इस्तेमाल किया जाने लगा। आजादी के बाद शुरुआती कुछ सालों में सभी सेरेमनी पर भारत के राष्ट्रपति इसी बग्घी से जाते थे और साथ ही 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन के आसपास भी इसी से चलते थे। पहली बार इस बग्घी (Carriage) का प्रयोग भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। यह सिलसिला 1984 तक ऐसे ही जारी रहा।

बंटवारे के वक्त बग्घी पर दोनों देशों ने ठोका था अपना-अपना दावा

जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो प्रत्येक चीज़ का बंटवारा किया गया। दोनों देशों के बीच जमीन से लेकर सेना और अन्य सभी चीजों का बंटवारा होना था। इसके लिए नियम भी तय किए गए थे। भारत की ओर से एच. एम. पटेल और पाकिस्तान की तरफ से चौधरी मोहम्मद अली को यह अधिकार सौंपा गया था ताकि इस बंटवारे के काम को आसान करें। राष्ट्रपति के अंगरक्षकों को दोनों देशों ने 2:1 के अनुपात में बांट लिया आखिर में बात वायसराय की बग्घी (Carriage) पर अपना-अपना दावा ठोक दिया था।

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बग्घी का फैसला था बेहद दिलचस्प

बग्घी को लेकर जब दोनों देश अपना-अपना दावा ठोकने लगे और अड़ गए तो इस विवाद को सुलझाने के लिए टॉस का सहारा लिया गया। उस समय तक वायसराय के नाम से राष्ट्रपति को जाना जाता था। उनके बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तानी सेना के साहबजादा याकूब खान के बीच बग्घी को लेकर टॉस हुआ और यह बग्घी (Carriage) टॉस जीतने के बाद भारत के हिस्से में आ गई।

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इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बढ़ाई गई थी सुरक्षा

1984 में हुई इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के VVIP की सुरक्षा के मद्देनजर इस बग्घी को हटा दिया गया । इसकी जगह बुलेटप्रूफ कार ने ले ली थी। हालांकि 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया था। वह बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचे थे। इसके बाद 25 जुलाई 2017 के दिन रामनाथ कोविंद भी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने राष्ट्रपति भवन से संसद तक बग्घी से ही पहुंचे थे। इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कला और प्रतिभा पाटिल को भी कुछ खास मौकों पर इस बग्घी का इस्तेमाल करते हुए ही देखा गया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत की राष्ट्रपति के साथ इस शाही बग्घी की सवारी का लुत्फ उठाया ।

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