उत्तराखंड मे UCC पारित हो गया.चर्चा है कि गुजरात और असम की राज्य सरकारें भी ऐसे बिल ला सकती हैं.उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय को शरिया कानून के जारिए 87 साल से मिल कई अधिकार को खत्म कर दिया गया हैं
मुस्लिम समुदाय में व्यक्तिगत मामले जैसे विवाह, तलाक,भरण-पोषण,विरासत,बच्चों की अभिरक्षा आदि मुस्लिम प्राइवेट लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 द्वारा शासित होते हैं. और दावा ये किया जाता हैं कि शरीयत कानून और पैगंबर की शिक्षाओं पर आधारित है.
शरिया कानून कहता है कि एक मुस्लिम लड़की मासिक धर्म की उम्र यानी 13 साल की उम्र के बाद शादी के योग्य हो जाती है। वे 13 साल की उम्र में शादी कर सकते हैं, जबकि भारत में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल है। अब उत्तराखंड में भी मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की शादी की उम्र 18 और लड़कों की 21 साल होगी.
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शरिया कानून निकाह-हलाल का प्रावधान करता है। आसान शब्दों में कहे तो तो अगर कोई मुस्लिम महिला तलाक के बाद उसी पुरुष से दूसरी बार शादी करना चाहती है तो उसे पहले हलाल के मुताबिक किसी तीसरे पुरुष से शादी करनी होगी। उत्तराखंड यूसीसी ने भी निकाह हलाल और इद्दत पर प्रतिबंध लगा दिया है.
शरिया बहुविवाह की अनुमति देता है जबकि भारत बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाता है। अब उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने से मुस्लिम बहुविवाह नहीं कर सकेंगे। आपको बता दें कि अन्य धर्मों में बहुविवाह पर पहले से ही प्रतिबंध है.
87 साल पुराने शरिया कानून में कहा गया है कि एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा किसी को भी दे सकता है, जबकि बाकी उसके परिवार को मिलेगा। अगर वसीयत नहीं है तो संपत्ति का बंटवारा कुरान और हदीस में बताए गए नियमों के मुताबिक किया जाएगा। उत्तराखंड यूसीसी में भी यह बदलाव हुआ है। अब आपको अपनी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा देने की जरूरत नहीं है.