Footpath School: Ghaziabad के फुटपाथ स्कूल में गरीब बच्चों की दी जाती है फ्री शिक्षा

Footpath School Ghaziabad: बेशक ये स्कूल देखने में स्कूल जैसा नहीं। लेकिन झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों के लिए ये स्कूल स्वर्ग से कम नहीं। अमन सागर, छात्र:पापा मेरे पेंट का काम करते हैं और मम्मी मेरी कोठियों में काम करती हैं। क्या वे तुम्हें पढ़ा नहीं पाते हैं नहीं, एडमिशन मेरा हो गया है। नीरजा मैम ने कराया। दोरन ने हमारे पैसे दिए। इसलिए हमारा एडमिशन हो गया। हमारी मम्मी के पास इतने पैसे नहीं कि हम पढ़ सकें।कैसा लगता है यहां पढ़ने आते हो आप? कितना सीखा आपने?हमने यहां पे बहुत कुछ सीखा है।

रिंकी छात्रा:मैंने यहां पर आके बहुत कुछ सीखा है। और मैं आगे चलके पुलिस बनना चाहती हूं।सवाल: आजकल देश की बेटियां बहुत कुछ करना चाहती हैं। तो आपको क्या प्रेरणा रहती है? पुलिस क्यों बनना चाहती हो? मेरे गांव में कुछ हुआ था। तो उसमें हर किसी में ज्यादातर लड़के ही आगे रहते हैं। किसी में भी लड़किया आगे ही नहीं रहतीं। इसलिए मैं आगे बढ़ना चाहती हूं। ये स्कूल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में रहने वाली नीरजा सक्सेना की सोच है।रोजाना स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल के छात्र इंदिरापुरम के मंगल चौक में फुटपाथ पर जमा होते हैं। राहगीरों के लिए ये स्कूल भारी कौतुहल का विषय होता है।

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नीरजा सक्सेना शिक्षिका:वे सब बच्चे हमारे मकनपुर गांव के झुग्गी-झोपड़ी के बच्चे हैं। कोरोना का जब खत्म हो गया, मदर्स का सब जॉब पे चली गईं, भटकते रहते थे। तो खाना हम बांटते थे। तो उसमें हमने किया कि इन्हीं बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। कोई स्कूल नहीं जाता है। सारे बच्चे यहीं पढ़ते हैं। और हमें दो-ढाई साल हो गए। कोरोना जब खत्म हुआ, तब से शुरू कर दिया था। और इसमें काफी बच्चे, 20-25 बच्चों ने एडमिशन ले लिए। 2019 में एनटीपीसी से रिटायर हुईं नीरजा ने 58 साल की उम्र में समाज सेवा में मास्टर डिग्री ली। तब से वे वंचित समाज के लिए काम कर रही हैं।

उनकी कोशिशों ने कुछ स्वयंसेवकों का भी ध्यान खींचा है। अब वे उनकी नेक कोशिश में हाथ बंटाते हैं।वंदना श्रीवास्तव शिक्षिका:और एक मिशन हम और साथ लेकर चल रहे हैं। कि ईच वन, टीच वन। बच्चों को हमने सिखाया कि ईच वन, टीच वन का मतलब क्या होता है। और आप देख के दंग रह जाएंगे कि बच्चे, जब हम कुछ वर्क इनको देते हैं तो बच्चे आपस में एक-दूसरे को पार्टनर बना करके एक-दूसरे को याद करवाते हैं, एक-दूसरे के काम कम्पलीट करवाते हैं। और ये मान करके कि हम ईच वन, टीच वन को फॉलो कर रहे हैं।ज्यादातर बच्चों के पास औपचारिक शिक्षा का साधन नहीं है। फुटपाथ स्कूल उनके लिए आशा की किरण है, जो उन्हें उज्ज्वल जीवन की राह दिखा सकता है।

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