लोकतंत्र की गरिमा के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चर्चा महत्वपूर्ण है-सांसद मनोज झा

आरजेडी सांसद मनोज झा ने सोमवार को कहा कि संसदीय लोकतंत्र की गरिमा तभी कायम रहेगी जब सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने मतभेदों के बीच चर्चा करेंगे।मनोज झा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को लिखे पत्र का जिक्र कर रहे थे।उन्होंने कहा, “हमारे माननीय सभापति और खड़गे साहब की तरफ से लिखे गए पत्र एक ही विचार व्यक्त करते हैं। संसदीय लोकतंत्र में हमें ये स्वीकार करना होगा कि जनता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल दोनों का फैसला करती है। लेकिन विपक्ष के बिना हम संसद के बारे में नहीं सोच सकते।

इसलिए हमारा मानना ​​है कि जो कुछ हुआ है, वो हुआ है, लेकिन इसका समाधान होना चाहिए।कुछ चीजें हैं जिनके बारे में हमें सार्वजनिक डोमेन में बात करने की जरूरत है। सांसदों का निलंबन ठीक है, लेकिन सवाल उठाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है। अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष मतभेदों के बीच चर्चा करेंगे तो संसद की गरिमा बनी रहेगी।विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा के सभापति और उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को लिखे पत्र में कहा कि सत्तारूढ़ दल ने सांसदों के निलंबन को लोकतंत्र को कमजोर करने, संसदीय प्रथाओं को खत्म करने और संविधान का गला घोंटने के सुविधाजनक उपकरण के रूप में हथियार बनाया है।धनखड़ की तरफ से लिखे गए पत्र के जवाब में खड़गे ने कहा कि सभापति का पत्र “दुर्भाग्य से संसद के प्रति सरकार के निरंकुश और अहंकारी रवैये को सही ठहराता है।

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कांग्रेस अध्यक्ष ने उनसे राज्यसभा के सभापति के रूप में निष्पक्षता से और तटस्थता के साथ उनकी चिंताओं की जांच करने का आग्रह किया।खड़गे ने कहा, “अगर विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए विशेषाधिकार प्रस्तावों को भी हथियार बनाया गया है। सांसदों को निलंबित करके, सरकार कुल मिलाकर 146 सांसदों के मतदाताओं की आवाज को प्रभावी ढंग से चुप करा रही है।जगदीप धनखड़ ने अपने पत्र में कहा था कि विपक्ष के नेता से मिलने की उनकी कोशिश को अस्वीकार कर दिया गया था।

खड़गे ने कहा कि उन्होंने निलंबन शुरू होने से पहले 14 दिसंबर को सुरक्षा उल्लंघन पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान मांगा था।उन्होंने कहा, “मैं मानता हूं कि अध्यक्ष के रूप में इन नोटिसों पर फैसला लेना आपकी शक्तियों के अंतर्गत है। हालांकि, ये खेदजनक है कि अध्यक्ष ने माननीय गृह मंत्री और सरकार के रवैये को नजरअंदाज कर दिया, जो सदन में बयान नहीं देना चाहते थे।खड़गे ने कहा कि वे सभापति से सहमत हैं कि उन्हें आगे बढ़ने की जरूरत है।हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर सरकार सदन चलाने की इच्छुक नहीं है तो इसका उत्तर सभापति के कक्ष में चर्चा में नहीं मिल सकता है।खड़गे ने कहा कि वे फिलहाल दिल्ली से बाहर हैं और उनके वापस आते ही सभापति से मिलना उनका विशेषाधिकार और कर्तव्य होगा।

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आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि हमारे माननीय सभापति और खड़गे साहब की तरफ से लिखे गए पत्र एक ही विचार व्यक्त करते हैं। संसदीय लोकतंत्र में हमें ये स्वीकार करना होगा कि जनता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल दोनों का फैसला करती है। लेकिन विपक्ष के बिना हम संसद के बारे में नहीं सोच सकते। इसलिए हमारा मानना ​​है कि जो कुछ हुआ है, वो हुआ है, लेकिन इसका समाधान होना चाहिए।कुछ चीजें हैं जिनके बारे में हमें सार्वजनिक डोमेन में बात करने की जरूरत है। सांसदों का निलंबन ठीक है, लेकिन सवाल उठाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है। संसद लोगों की संपत्ति है। अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष मतभेदों के बीच चर्चा करेंगे तो संसद की गरिमा बनी रहेगी।

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