होली आने में अब बस कुछ ही दिन शेष है। सभी लोग इस खास दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मिठाईयों और रंगों से सराबोर यह त्योहार सभी लोगों के जीवन में नई उमंग भर देता है। लेकिन ऐसे माहौल में इस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरुरी है की कहीं ज्यादा मिठा ना हो जाए। खासतौर से वैसे लोग जिनको डायबिटीज की समस्या है। वैसे भी भारत को पूरी दुनिया में ‘डायबिटीज कैपिटल’ कहा जाता है। बता दें कि भारत में पूरी दुनिया के लगभग 17% डायबिटीज पेशेन्ट है। यानि की भारत में डायबिटीज मरीज की संख्या लगभग 8 करोड़ के आसपास है। और आने वाले भविष्य में यह बढ़ने की उम्मीद बहुत ज्यादा है। डायबिटीज मतलब शुगर की बीमारी इतने भारतीयों को अपनी चपेट में क्यों ले रही है। डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जो जेनेटिक या फिर गलत लाइफस्टाइल की वजह से होता है। लेकिन भारत में अधिकतम लोगों को टाइप 2 तरह की डायबिटीज की समस्या ज्यादा है। और इसकी वजह उनके खराब डाइट, फिजिकल एक्टिविटी, तनाव, नींद और जींस जैसे कई फैक्टर हैं।
एक हेल्थ सर्वे के अनुसार पुरुषों के मुकाबले महिलाएं इसकी चपेट में कम आ रही हैं। और इसका सीधा सा जवाब भी हमारे पास यह है की महिलाएं ज्यादा उम्र हो जाने के बाद भी घर के कामों में एक्टिव रहती है। खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं। जो उन्हें फिजिकली तौर पर स्वस्थ रखता है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 30 साल से ज्यादा उम्र की लगभग 9 % महिलाओं को डायबिटीज की समस्या है जबकि 13 % पुरुषों को डायबिटीज है। लेकिन भारतीयों घरों अक्सर देखा जाता है की डायबिटीज पेशेंट महिला अपने घर के पुरुषों का ध्यान तो रख लेती हैं लेकिन महिलाएं अपना ध्यान नहीं रख पाती हैं। डायबिटीज पेशेंट पुरुषों का तो अलग से खाना बन जाता है। लेकिन महिलाएं अपने लिए खाना नहीं बना पाती है। शायद ये उनका बजट को लेकर भी अपने एक ख्याल हो सकता है लेकिन सबसे बड़ी बात ये है की ये असमानता छोटे और बड़े घरों में समान है।
शिक्षा और जागरुकता का डायबिटीज से सीधा संबंध है। यदि आप शिक्षित नहीं हैं और सेहत को लेकर चौकन्ने नहीं रहते हैं तो डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है। वहीं इसमें एक बात ये भी सामने आयी है की आप अपनी सेहत पर कितना खर्च कर सकते हैं बल्कि यह जरूरी है कि आप बीमारी के बारे में कितना जानते हैं और कितने अलर्ट रहते हैं। वहीं दिल्ली में हुए डायबिटीज पीड़ितों पर रिसर्च के दौरान ये बात सामने आयी की बहुत कम पढ़े-लिखे लोगों को भी डायबिटीज के बारे में पता था। वो ये भी जानते थे कि इसे कैसे कंट्रोल किया जा सकता है। उनके पास जो भी संसाधन थे, उसके जरिए ही वे इससे लड़ रहे थे।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे-वैसे डायबिटीज होने का रिस्क बढ़ता है। यानी इंसुलिन रेसिस्टेंस बढ़ता जाता है। लेकिन 60 की उम्र के बाद डायबिटीज का रिस्क कम होने लगता है। वहीं डायबिटीज के मामले में भारत की कुछ राज्यों की हालत बहुत ही चिंताजनक है। ये राज्य हैं-पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और त्रिपुरा। वहीं युवाओं में डायबिटीज होने का मुख्य कारण युवाओं में डायबिटीज होने का मुख्य कारण नींद पूरी ना होना और स्ट्रेस लेना है। लोकल सर्वे के अनुसार हर 4 में से 1 भारतीय 4 घंटे से भी कम नींद लेता है। देश में केवल 6% ही लोग हैं जो 8 घंटे की नींद पूरी करते हैं। इसके अलावा गलत खान पान भी डायबिटीज होने का एक बड़ा फैक्टर है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पिछले 25 वर्षों में देश में डायिबिटीज 64% बढ़ी है। ऐसा दुनिया के किसी भी देश में इस रफ्तार से डायबिटीज नहीं बढ़ी। अब सवाल यह उठता है कि भारतीय किसी दूसरी बीमारी के मुकाबले डायबिटीज के अधिक शिकार क्यों हो रहे? एक सर्वे के अनुसार भारत में टाइप 2 डायबिटीज होने के पीछ जेनेटिक कारण हो सकता है। साथ ही डाइट और लाइफस्टाइल बदलने से यह रिस्क कई गुना बढ़ जाता है।
एज, जेंडर और BMI एक समान होने पर भी यूरोपियन की तुलना में भारतीयों में इंसुलिन रेसिस्टेंस ज्यादा होता है। इंसुलिन रेसिस्टेंस का मतलब है मांसपेशियां, फैट और लिवर की कोशिकाएं ग्लूकोज को ठीक से एब्जॉर्ब नहीं कर पाएंगी। यानी ग्लूकोज ब्लड में ही जमा होने लगेगा। जो भारतियों में सबसे ज्यादा डायबिटीज होने का मुख्य कारण है।
वहीं कुछ दशकों से भारत में शहरीकरण में काफी तेजी आयी है। जिसका सीधा असर उनके खानपान और लाइफस्टाइल पर पड़ा। वहीं जहां पारंपरिक थाली की जगह फास्ट फूड कल्चर ने ली, वहीं फिजिकल एक्टिविटी भी कम हो गई। इन सबके कारण मोटापा एक गंभीर समस्या बना है। वहीं कोरोना महामारी के बाद डायबिटीज पेशेंट की संख्या तेजी से वृद्धि हुई है। और यह उनलोगो के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है जिन्हे डायबिटीज के साथ-साथ ब्लैक फंगस म्यूकोरमाइकोसिस से पीड़ित हुए। एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के कई वैरिएंट्स हैं जो सीधे पैंक्रियाज पर हमला करते हैं। इससे उन सेल्स में गड़बड़ी होती है जो इंसुलिन बनाते हैं। इंसुलिन में गड़बड़ी के कारण डायबिटीज होने के खतरे बढ़ जाते हैं।
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अगर आपको डायबिटीज है या नहीं इसके लिए खून ने ग्लूकोज़ का टेस्ट करवाना बहुत जरुरी है जिसे रैंडम ग्लूकोज़ टेस्ट के नाम से जाना जाता है। इससे आने वाले समय ग्लूकोज होगा या नहीं इसका अनुमान लग जाता है। अगर ग्लूकोज लेवल 140 mg/dl से ऊपर आए तो डॉक्टर डायबिटीज कंफर्म करने के लिए दूसरा टेस्ट करवाएं।
वहीं ग्लूकोज टेस्ट करने का दूसरा तरीका भी है जिसे फास्टिंग ग्लूकोज टेस्ट और ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट कहा जाता है। इसमें टेस्ट से 8 घंटे पहले तक कुछ खाना-पीना नहीं होता है। 8 घंटे बाद व्यक्ति को ग्लूकोज लिक्विड पीने को देते हैं। 2 घंटे के बाद फिर से ब्लड ग्लूकोज मापा जाता है। इससे कंफर्म हो जाता है कि व्यक्ति डायबेटिक है या नहीं। वहीं इस खतरे से बचने का एक मात्र उपाय है की आपको इसके बारे में सही जानकारी रहे और आप अपने लाइफ स्टाइल को सही तरीके से मैनेज कर सके। और इस बात का ध्यान रखें कि पूरी नींद, सही खुराक और फिजिकल एक्टिविटी इस बीमारी से दूर रखने में मदद करती है।